सड़कें
सड़कें चित्र उकेरती हैं
सजीव चित्र, विभिन्न चित्र
कहीं किसी कोने में
काले रंग से अंधकार दिखाकर
वहाँ छोटे-छोटे चूल्हे जलाकर
दिखते हैं कुछ मजबूर लोग
कुछ मजबूर लोग, कुछ मज़दूर लोग
कुछ बेपरवाह सड़कों पर खुली
साँस लेते जीवन से भरे हुए
खिले हुए लोग
तो कहीं किसी कोने में
बुरी आदतों का मारा
शीशी-बोतलों से हारा
कहीं सब कुछ लुटा चुका
कहीं सब कुछ लुटाने वाला
दिखता है एक डगमगाता आदमी
खाक छानता हुआ
खुद को बादशाह मानता हुआ
कहीं दिखती हैं कुछ बेचारी माँएँ
अपने नन्हे शिशुओं को गले से लगाए हुए
छोटी सी खुशी पर दिल से मुस्कुराए हुए
कड़कड़ाती सर्दी में सीने की गर्मी से बच्चे को सुलाए हुए
अपनी थाली का खाना उसकी भूख के लिए बचाए हुए
काली अंधेरी रात में आँखों में जीवन ज्योति जलाए हुए
वहीं कहीं दिखती हैं
पूरी सड़क घेरे चमचमाती
शोर मचाती
दो-चार-आठ पहिए की
गाड़ियाँ .............
उस ठहरी सी सड़क पर भागती हुई सी
उस सोती सी रात में खुद जागती हुई सी
कुछ कहीं से लौटती कुछ कहीं जाती हुई सी
कुछ अपने सपने पूरे करके वापस आती हुई सी
सड़कें..........
सड़कें बहुत बड़ा चित्र दिखाती हैं
थोड़ी-थोड़ी देर में एक नया भाव समझाती हैं
एक चेतावनी देती हैं हमें......
कि किस कोने में, किस चित्र में
खुद को लगाया जाए
कि खुद बसा जाए या किसी का संसार बसाया जाए
कि इस चित्र में कुछ तो सुधारा जाए
इस विभिन्नता पर थोड़ा ध्यान लगाया जाए
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