परिवर्तन
journaling start कर दी है। ये सच है कि आप सब कुछ वो नहीं लिखते जिसे आप किसी को भी पढ़ा सकें। लेकिन आप ऐसा बहुत कुछ लिख सकते हैं जिसे कोई पढ़े तो उसे कुछ नया पता चले, या वो कुछ नया सीख पाए या फिर कुछ idea मिल जाए या कुछ भी ऐसा हो जाए कि पढ़ने वाले के जीवन में किसी न किसी तरह का कोई एक परिवर्तन आ जाए। मेरा आज का journal बदलते मौसम को ध्यान में रखते हुए लिखा जा रहा है।
कभी-कभी सोचती हूँ कि बदलाव सच में कितना ज़रूरी है। फिर हम बदलाव से क्यूँ डरते हैं? क्यूँ हमें ज़्यादातर ये ही लगता है कि बदलाव कहीं कुछ बुरा न हो जाए। प्रकृति में आते बदलाव हमें ये सिखाने का पूरा प्रयास करते हैं कि बदलाव से डरना नहीं चाहिए। कुछ बदलाव बेहद ज़रूरी होते हैं और कुछ बदलाव बहुत सुंदर होते हैं।
मौसम बदल रहा है। धीरे-धीरे हर साल हम बड़े हो रहे हैं। बड़े होने के साथ-साथ ज़िम्मेदारियाँ बढ़ रही हैं। ज़िम्मेदारियों के साथ जीवन में अनुशासन की माँग बढ़ती जा रही है। अब अगर इस परिवर्तन से डरने लग भी जाएँ तो क्या होगा? जो परिवर्तन होना है वो तो होगा ही। हमारे सहज स्वीकारने से हमारे अंदर से डर की भावना ख़त्म हो जाएगी। और जब मन से डर की भावना ख़त्म हो जाए और स्थिति को स्वीकार लिया जाए तो स्थिति को बेहतर किया जा सकता है।
कुछ लोगों का कहना होता है कि यदि स्थिति स्वीकार ली जाएगी तो फिर वो वैसी ही रहेगी उसे बदलना नहीं जा पाएगा। किंतु मुझे लगता है यदि अप्रिय स्थिति को भी एक बार स्वीकार लिया जाए तो उसे सुधारने की कोशिश की जा सकती है और उसे सुधारा जा सकता है।
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