वाच्य-
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा बताए गए विषय में कर्ता, कर्म, अथवा भाव में से कौन प्रमुख है, उसे वाच्य कहते हैं।
दूसरे शब्दों में – वाच्य क्रिया का वह रूप है, जिससे यह ज्ञात होता है कि वाक्य में कर्ता प्रधान है, कर्म प्रधान है अथवा भाव प्रधान है। क्रिया के लिंग एवं वचन उसी के अनुरूप होते हैं।
इस परिभाषा के अनुसार वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन या तो कर्ता के अनुसार होंगे अथवा कर्म के अनुसार अथवा भाव के अनुसार।
वाच्य, क्रिया के उस रूपान्तरण को कहते हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि वाक्य में क्रिया कर्ता के साथ है, कर्म के साथ अथवा इन दोनों में से किसी के भी साथ न होकर केवल क्रिया के कार्य व्यापार (भाव) की प्रधानता है।
जैसे –
राधा पत्र लिखती है।
राधा द्वारा पत्र लिखा जाता है।
तुमसे लिखा नहीं जाता।
वाच्य के भेद–
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य
- भाववाच्य
कर्तृवाच्य-
जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष- कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हों, तो कर्तृवाच्य कहलाया जाता है।
सरल शब्दों में– क्रिया के जिस रूप में कर्ता प्रधान हो, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। इसमें लिंग एवं वचन प्रायः कर्ता के अनुसार होते हैं।
उदाहरण–
रमेश केला खाता है।
दिनेश पुस्तक पढ़ता है।
इन दोनों वाक्यों में कर्ता प्रधान है तथा उसी के लिए ‘खाता है’ तथा ‘पढ़ता है’ क्रियाओं का प्रयोग हुआ है, इसलिए यहाँ कर्तृवाच्य है।
कर्मवाच्य-
जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष- कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हो, तो कर्मवाच्य कहलाता है अथवा क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं जिससे यह ज्ञात हो कि वाक्य में कर्ता की प्रमुखता न होकर कर्म की प्रमुखता है।
सरल शब्दों में– क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं या जहाँ क्रिया का संबंध सीधा कर्म से हो तथा क्रिया का लिंग तथा वचन कर्म के अनुसार हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं।
उदाहरण –
मीरा ने दूध पीया।
मीरा ने पत्र लिखा।
मीरा ने किताब पढ़ी।
– पहले वाक्य में ‘मीरा’ (कर्ता) स्त्रीलिंग है परन्तु ‘पीया’ क्रिया का एकवचन, ‘पुल्लिंग’ रूप ‘दूध’(कर्म) के अनुसार आया है।
– दूसरे वाक्य में भी ‘मीरा’ (कर्ता) स्त्रीलिंग है परन्तु ‘लिखा’ क्रिया का एकवचन, ‘पुल्लिंग’रूप ‘पत्र’(कर्म) के अनुसार आया है।
– दूसरे वाक्य में भी ‘मीरा’ (कर्ता) स्त्रीलिंग है परन्तु 'पढ़ी' क्रिया का एकवचन, 'स्त्रीलिंग' रूप 'किताब' के अनुसार रखा गया है।
भाववाच्य-
जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता अथवा कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार न होकर एकवचन, पुल्लिंग तथा अन्य पुरुष हो, तो भाववाच्य कहलाता है।
दूसरे शब्दों में– क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो, न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है। इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं। इसमें क्रिया सदैव पुल्लिंग, अन्य पुरुष के एक वचन की होती है।
उदाहरण–
मोहन से टहला भी नहीं जाता।
मुझसे उठा नहीं जाता।
धूप में चला नहीं जाता।
उक्त वाक्यों में कर्ता या कर्म प्रधान न होकर भाव मुख्य हैं, अतः इनकी क्रियाएँ भाववाच्य का उदाहरण हैं।
ध्यान रखने योग्य कुछ बातें हैं–
1. भाववाच्य का प्रयोग प्रायः विवशता, असमर्थता व्यक्त करने के लिए होता है।
2. भाववाच्य में प्रायः अकर्मक क्रिया होता है।
3. भाववाच्य में क्रिया सदैव अन्य पुरुष, पुल्लिंग और एकवचन में होती है।
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तित कुछ उदाहरण
कर्तृवाच्य | कर्मवाच्य | |
1 | चित्रकार चित्र बनाता है। | चित्रकार द्वारा चित्र बनाया जाता है। |
2 | राधा नृत्य करती है। | राधा द्वारा नृत्य किया जाता है। |
3 | पुलिस ने अपराधी को पकड़ा। | पुलिस द्वारा अपराधी को पकड़ा गया। |
4 | यह दूकान पिता जी ने बनवाई थी। | यह दूकान पिता जी के द्वारा बनवाई गई थी। |
5 | निशा ने अच्छी कविता लिखी है। | निशा द्वारा अच्छी कविता लिखी गई। |
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