अलंकार
कक्षा १० हिंदी के पाठ्यक्रम में चलने वाले अलंकार हैं-
अर्थालंकार-
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
अतिशयोक्ति अलंकार
मानवीकरण अलंकार
1- उपमा अलंकार
इसमें एक वस्तु या व्यक्ति की तुलना किसी दूसरी वस्तु या व्यक्ति से की जाती है, ताकि उसकी विशेषता को और अधिक स्पष्ट किया जा सके। उपमा अलंकार में उपमेय (जिसकी तुलना की जा रही है) और उपमान (जिससे तुलना की जा रही है) का होना आवश्यक है। साथ ही, तुलना में उपमान वाचक शब्द जैसे ‘जैसे’, ‘समान’, ‘सा/सी’, ‘सम’, ‘प्रति’ आदि का प्रयोग होता है।
उपमा अलंकार के मुख्य तत्व
- उपमेय – जिसकी तुलना की जा रही है।
- उपमान – जिससे तुलना की जा रही है।
- वाचक शब्द – ‘जैसे’, ‘समान’, ‘सा/सी’ आदि शब्द।
- धर्म – वह गुण या विशेषता जिसके कारण तुलना हो रही है।
उदाहरण
१- बाल्यकाल के आदित्य जैसा उज्ज्वल चेहरा
स्पष्टीकरण- आदित्य अर्थात् सूर्य। किसी के चहरे (मुख) को प्रातः काल के सूर्य के समान उज्ज्वल बताया गया है।
- उपमेय – मुख/ चेहरा
- उपमान – सूर्य
- वाचक शब्द – जैसा
- धर्म – उज्ज्वल
२- कोटि कूलिस सम बचन तुम्हारा
- उपमेय – बचन
- उपमान – कूलिस
- वाचक शब्द – सम
- धर्म – कठोरता
३- मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
- उपमेय – स्वर
- उपमान – चट्टान
- वाचक शब्द – जैसे
- धर्म – भारी
४- अभिनव का चेहरा गर्मी में लाल टमाटर जैसा हो जाता है।
- उपमेय – चेहरा
- उपमान – टमाटर
- वाचक शब्द –जैसा
- धर्म – लाल
2- रूपक अलंकार
रूपक अलंकार हिंदी साहित्य के प्रमुख अलंकारों में से एक है। इसमें किसी वस्तु, व्यक्ति या विचार को उसके वास्तविक स्वरूप से हटकर अन्य वस्तु, व्यक्ति या विचार का रूप दे दिया जाता है। यहाँ तुलना में उपमेय (जिसकी तुलना की जा रही है) और उपमान (जिससे तुलना की जा रही है) के बीच इतना अधिक साम्य होता है कि उपमेय को उपमान का ही रूप मान लिया जाता है। इस प्रकार की कल्पनाओं के कारण रूपक अलंकार का प्रयोग कवि की रचना में सौंदर्य और गहराई को बढ़ाता है।
मुख्य बिंदु
1. 'उपमेय' और 'उपमान' का एक हो जाना।
2. उपमेय और उपमान के बीच इतना अधिक साम्य होना कि उपमेय को उपमान ही मान लिया जाता है।
3. उपमा वाचक शब्द (जैसे, सा, समान आदि) का प्रयोग नहीं होता।
उदाहरण
1. "कमल नयन"– यहाँ नायक या नायिका की आँखों को सीधे "कमल" का रूप दिया गया है। आँखों की सुंदरता और कोमलता को कमल की तरह दिखाया गया है।
2. "सूरजमुखी"– इस शब्द में "मुख" (चेहरा) का रूप "सूरज" के रूप में दिखाया गया है। सूरजमुखी फूल का चेहरा सूरज की तरह दिखने के कारण इसे यह नाम दिया गया है।
3. "चंद्रमुखी"– इसमें किसी व्यक्ति के मुख को चंद्रमा का रूप दिया गया है। यहाँ मुख की शीतलता और सुंदरता को चंद्रमा से जोड़ दिया गया है।
4. "बुद्धि दीपक"– यहाँ बुद्धि को दीपक का रूप दिया गया है। जैसे दीपक अंधकार को दूर करता है, वैसे ही बुद्धि जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाती है।
5. "प्रेम सागर"– इसमें प्रेम को सागर का रूप दिया गया है, यह दर्शाता है कि प्रेम बहुत गहरा और विशाल है, जैसे सागर।
छात्रों के द्वारा दिए गए उदाहरण-
1- गोपियाँ कृष्ण के प्रेम सागर में डूबी हुई थीं।
विशेषताएँ
- रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में इतनी गहरी समानता होती है कि दोनों एक ही प्रतीत होते हैं।
- इसके प्रयोग से रचना में सौंदर्य, कोमलता, और भावनात्मक गहराई उत्पन्न होती है।
- यह सीधे तुलना न करते हुए उपमेय को उपमान का रूप दे देता है, जिससे कल्पना और भावुकता का सुंदर संयोग होता है।
काव्यगत उदाहरण
1. "तेरे नयन कमल के फूल हैं।"
- यहाँ नयन को कमल के फूल का रूप मान लिया गया है।
2. "माँ तू सच्चा प्रेम सागर है।"
- यहाँ माँ के प्रेम को सागर का रूप दिया गया है, जो गहरा और असीमित है।
3. "वह हिम शिखर है।"
- इस वाक्य में किसी व्यक्ति को हिम शिखर के समान ठंडा और दृढ़ मान लिया गया है।
4. "उसके बाल घनघोर घटाएँ हैं।"
- यहाँ बालों को घनघोर घटाओं का रूप दे दिया गया है, जिससे बालों के घनत्व और सुंदरता स्पष्ट होती है।
रूपक अलंकार का प्रयोग कविता और गद्य दोनों में होता है, और यह अलंकार पाठक की कल्पना को गहराई तक छूता है।
(अधिक समझाने के लिए विद्यार्थी स्वयं कुछ उदाहरण खोजें तथा बनाएँ)
3- उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार हिंदी साहित्य में एक विशेष अलंकार है जिसमें किसी वस्तु या व्यक्ति में कोई गुण या विशेषता ऐसी कल्पना के साथ प्रस्तुत की जाती है जैसे वह गुण उसमें निहित हो सकता है, परंतु होता नहीं है। उत्प्रेक्षा में कवि अपनी कल्पना के माध्यम से यह सोचता है कि अगर वह गुण या विशेषता वस्तुतः उस वस्तु में होती, तो कैसा होता। इसमें 'जैसे', 'मानो', 'यदि', 'माना', 'ज्यों' आदि शब्दों का प्रयोग होता है, जो कल्पना का संकेत देते हैं।
उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रमुख तत्व
1. उपमेय– जिसकी कल्पना की जा रही है।
2. उपमान– जिससे कल्पना की जा रही है।
3. उत्प्रेक्षा वाचक शब्द– "मानो", "जानो", "जनु", "मनु" आदि शब्द।
4. धर्म– वह विशेषता जिसके आधार पर कल्पना की गई है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
1. "मानो वह सूर्य किरणों के हार पहनकर निकला हो।"
व्याख्या- इस पंक्ति में किसी व्यक्ति के तेजस्वी रूप की कल्पना की गई है। मानो वह सूर्य की किरणों से बना हार पहनकर आ रहा हो। यहाँ तेजस्विता की कल्पना सूर्य की किरणों के हार के रूप में की गई है।
2. "वह ऐसे चल रहा है मानो बादलों पर तैरता हो।"
व्याख्या- इस वाक्य में व्यक्ति के चाल को बादलों पर तैरने जैसा माना गया है। यहाँ चाल की कोमलता की कल्पना बादलों पर तैरने के रूप में की गई है, जो उत्प्रेक्षा अलंकार का संकेत है।
3. "कमलिनी मानो चंद्र की चाँदनी में नहा उठी हो।"
व्याख्या- यहाँ कमलिनी (कमल का फूल) की सुंदरता को चंद्रमा की चाँदनी में स्नान करने की कल्पना के साथ प्रस्तुत किया गया है। यहाँ उपमेय "कमलिनी", उपमान "चंद्र की चाँदनी" और उत्प्रेक्षा वाचक शब्द "मानो" है।
4. "उसका चेहरा ऐसा लग रहा है मानो सूरज की लालिमा समाई हो।"
व्याख्या- यहाँ किसी व्यक्ति के चेहरे की सुंदरता को सूरज की लालिमा के समान बताया गया है। मानो उसके चेहरे में सूरज की लालिमा समा गई हो। यह उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर उदाहरण है।
5. "वह ऐसा लग रहा है जैसे पर्वत पर चढ़ता हुआ शेर हो।"
व्याख्या- इस पंक्ति में व्यक्ति के साहस और पराक्रम की कल्पना पर्वत पर चढ़ते हुए शेर के रूप में की गई है। यह उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण है, जहाँ साहस को शेर के पराक्रम के समान माना गया है।
विशेषताएँ
- उत्प्रेक्षा अलंकार में कवि या लेखक किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता को बढ़ा-चढ़ाकर कल्पना के माध्यम से प्रस्तुत करता है।
- यह अलंकार कविता और गद्य दोनों में पाठकों के मन में सजीव कल्पना उत्पन्न करता है।
- उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता को और प्रभावी बनाने के लिए किया जाता है, जिससे पाठक उस वस्तु या व्यक्ति की छवि को गहराई से अनुभव कर सके।
उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग साहित्य में भावनाओं और कल्पनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है, जिससे पाठक को किसी भी विशेषता की सजीव छवि मिल सके।
4- अतिशयोक्ति अलंकार
परिभाषा-
अतिशयोक्ति अलंकार में किसी बात या घटना को इतना बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाता है कि वह असंभव या अत्यधिक प्रतीत होती है। इस अलंकार का उपयोग किसी भावना, दृश्य या स्थिति को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है। अतिशयोक्ति में वस्तु या स्थिति के स्वाभाविक गुणों को असामान्य रूप से बड़ा दिखाया जाता है ताकि पाठक के मन में उस विशेष भावना की गहराई उत्पन्न हो सके।
अतिशयोक्ति अलंकार के साहित्यिक उदाहरण
1. "काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।"
कवि- सूरदास
व्याख्या- यहाँ सूरदास जी ने कौवे की अतिशय भाग्यशाली स्थिति को चित्रित किया है कि कौआ श्रीकृष्ण के हाथों से माखन रोटी ले गया। इस पंक्ति में घटना को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया है, जो अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण है।
2. "रक्त की नदियाँ बह रही हैं।"
कवि- अज्ञात
व्याख्या- इस वाक्य में युद्ध का वर्णन करते हुए रक्त को बहता हुआ दिखाया गया है, मानो वह नदियों के रूप में बह रहा हो। यहाँ रक्त के बहने की तीव्रता को बढ़ाकर बताया गया है, जो अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है।
3. "रोए ऐसे कि समुद्र भर जाए।"
कवि- अज्ञात
व्याख्या- इस पंक्ति में किसी के अत्यधिक रोने की स्थिति को दिखाया गया है कि उसके आँसुओं से समुद्र भी भर सकता है। यह एक असंभव सी प्रतीत होने वाली अतिशयोक्ति है, जो उसके दुख को अत्यधिक रूप में प्रस्तुत करती है।
4. "तुम्हारे बिना यह धरती सूनी लगती है।"
कवि- अज्ञात
व्याख्या- इस कथन में किसी प्रिय के बिना पूरी धरती को सूना बताया गया है, जो असंभव और बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात है। अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग कर यह दिखाया गया है कि व्यक्ति का अभाव कितना गहरा प्रभाव डालता है।
5. "गिरिधर नागर ऐसे नाचें, धरती हिल गई।"
कवि- मीराबाई
व्याख्या- मीराबाई ने यहाँ भगवान कृष्ण के नृत्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके नाचने से पूरी धरती हिल गई। यह एक असंभव सी स्थिति है, जो अतिशयोक्ति अलंकार का सुंदर उदाहरण है।
6. "सूर्य भी उसके तेज के आगे फीका पड़ गया।"
कवि- अज्ञात
व्याख्या- इस पंक्ति में किसी के तेज की अतिशयोक्ति करते हुए कहा गया है कि सूर्य भी उसके आगे फीका पड़ गया। यह असंभव है, लेकिन व्यक्ति की विशेषता को प्रभावी बनाने के लिए अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
अतिशयोक्ति अलंकार के विशेष बिंदु
- अतिशयोक्ति में किसी बात को असामान्य रूप से बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाता है।
- इसका उपयोग साहित्य में पाठक के मन में गहरी भावना उत्पन्न करने के लिए होता है।
- अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग कवि कल्पना को अधिक रोचक और प्रभावी बनाता है।
महत्त्व
अतिशयोक्ति अलंकार साहित्य को प्रभावशाली बनाता है और पाठकों के मन में विशेष भावनाओं का संचार करता है। इसका प्रयोग गहरे और गूढ़ अर्थ को सरलता से प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।
5- मानवीकरण अलंकार
परिभाषा
जब किसी निर्जीव वस्तु, भावना या प्रकृति के तत्वों को मानवीय गुण, भावनाएँ या क्रियाएँ प्रदान की जाती हैं, तो उसे मानवीकरण अलंकार कहा जाता है। इस अलंकार में निर्जीव वस्तुएँ, जानवर या अमूर्त चीजें ऐसे व्यवहार करती हैं जैसे कि उनमें मानवीय गुण हों। हिंदी साहित्य में इसका प्रयोग भावों को सजीव और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।
मुख्य तत्व
1. निर्जीव या अमूर्त वस्तु- जिसके मानवीकरण किया जा रहा है।
2. मानवीय गुण या भावनाएँ- जिनसे निर्जीव वस्तु को सजीव बनाया जाता है।
उदाहरण और उनकी व्याख्या
1. "पवन ने कानों में कुछ कहा।"
व्याख्या- इस पंक्ति में पवन (हवा) को ऐसा दर्शाया गया है जैसे वह कुछ कह रही हो। यहाँ हवा को बोलने का मानवीय गुण दिया गया है, जो वास्तव में संभव नहीं है, लेकिन यह मानवीकरण अलंकार का सुंदर उदाहरण है।
2. "चंदा मुस्कुरा रहा था।"
व्याख्या- यहाँ चंद्रमा को मुस्कुराते हुए दिखाया गया है, जो कि मानवीय गुण है। वास्तव में चंद्रमा मुस्कुरा नहीं सकता, परंतु इस अलंकार के माध्यम से कवि ने चंद्रमा को सजीव और सुंदर बनाने का प्रयास किया है।
3. "नदी खुश होकर गा रही थी।"
व्याख्या- इस पंक्ति में नदी को खुश होकर गाने का मानवीय गुण दिया गया है। यहाँ नदी को सजीव दिखाने के लिए उसका मानवीकरण किया गया है।
4. "सूरज अपनी किरणों से हँसता हुआ निकलता है।"
व्याख्या- इस पंक्ति में सूरज को मानवीय गुण ‘हँसने’ से युक्त किया गया है। सूरज वास्तव में नहीं हँस सकता, लेकिन इसका मानवीकरण करके उसे अधिक जीवंत और मनोरम बना दिया गया है।
5. "पहाड़ों ने रास्ता रोक लिया।"
व्याख्या- यहाँ पहाड़ों को ‘रास्ता रोकने’ का मानवीय गुण दिया गया है। पहाड़ वास्तव में रास्ता नहीं रोक सकते, लेकिन इस प्रकार से उन्हें मानवीय गुण प्रदान किया गया है।
6. "बादल घबरा कर इधर-उधर दौड़ रहे थे।"
व्याख्या- इस पंक्ति में बादलों को घबराने और दौड़ने का मानवीय गुण दिया गया है। बादल वास्तव में घबरा नहीं सकते, परन्तु मानवीकरण से भावनाओं को और अधिक सजीवता से प्रस्तुत किया गया है।
विशेषताएँ
भावनाओं को गहरा बनाना- मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किसी वस्तु या दृश्य को भावनात्मक रूप से सजीव बनाकर प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक के मन में गहरा प्रभाव पड़ता है।
कविता की सुंदरता बढ़ाना- मानवीकरण अलंकार का प्रयोग साहित्य की सुंदरता बढ़ाने और उसे रोचक बनाने के लिए किया जाता है।
कल्पना का विस्तार- यह पाठकों की कल्पना में विस्तार लाता है और चीजों को एक नए नजरिये से देखने की प्रेरणा देता है।
मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हिंदी साहित्य में व्यापक रूप से होता है और इसका उद्देश्य निर्जीव चीजों को मानवीय रूप में प्रस्तुत कर कविता या गद्य में गहराई और आकर्षण उत्पन्न करना होता है।
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