नई राह
बीच राह में बैठा पंथी, सोचा करता है एक बात।
मेहनत कर आगे बढ़ना है, चाहे दिन हो चाहे रात।।
सुबह सवेरे सूरज आता, हमको यही सिखाता है।
चाहे जितना हो अंधेरा, आखिर छट ही जाता है।।
अच्छा बुरा जैसा भी हो, समय की सूई चलती है।
जहाँ बंद होती एक राह, दूजी राह निकलती है।।
थक कर जब भी रुकता है, लेने को थोड़ा आराम।
कोशिशों पर लग जाता है, छोटा सा एक अल्प विराम।।
उठकर फिर से चलता है, करने को वो अपने काम।
एक-एक कर नई ठोकरें करता रहता अपने नाम।।
तभी हार कर नदी देखता, जो हमको यही सिखाती है।
जहाँ बंद होती एक राह, दूजी राह मिल जाती है।।
दीवार पर चलती चींटी, कितनी बार फिसलती है।
हर बार वो गिरती रहती फिर भी नित वो चलती है।
दृढ़ निश्चय कर आगे बढ़ना, उसका है यही स्वभाव।
हार कर भी हार न माने, दिल में रहता जीत का भाव।।
लगातार प्रयासों से वो, जीत अपने नाम लिखवाती है।
जहाँ बंद होती एक राह दूजी राह मिल जाती है।।
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