राह में चलता मुसाफिर,
कभी राह कोई भटक जाए ।
मंज़िल हो अभी दूर बहुत,
किंतु राही कहीं अटक जाए ।।
तो याद उसे दिलाना तुम,
जब राह एक पिछड़ती है ।
मत हो निराश तू राही अभी
अब नई राहें निकलती हैं।।
निरंतर बहती सरिता को जब
बीच राह में चट्टानें मिलती हैं
सागर में जाने को आतुर नदी
अपनी राह नहीं बदलती हैं
निरंतर चलने की आदत से
किसी ठोकर पर न अटकती है
पथ के हर पत्थर से उसकी
एक नई राह निकलती है
सुबह सवेरे जब पंछी जगते
घर से दाना चुगने निकलते हैं
अपने घर को छोड़ वहीं
वे अपरिचित पथों पर बढ़ते हैं
निराशा को दूर रख
दिल में नई उमंगें मचलती हैं
ढाढस रखना पंथी तू भी
हर मोड़ पर नई राह निकलती है
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद....🙏🏻🙏🏻🙏🏻