बदलाव
मैंने जो हक़ दिए थे तुम्हें वो आज वापस मेरे हवाले हैं
मैंने फिर तुम पर तुम्हारी यादों पर लगाए कड़े ताले हैं
कभी महफिलों में तुम्हें देख गले लगाने को तड़पते थे
आज मुतमईन होकर तुमसे, हम कितने किस्मत वाले हैं
तुम्हारे मिलने के वादे पर कितने खुश हो जाया करते थे
ज़िंदगी के अपने कितने बरस हमने यूँ बेकार कर डाले हैं
और तुम कहते हो कि हम अब कुछ बदल से गए हैं
इस बदलाव के लिए 'गुंजन' ने सारे कलाम पढ़ डाले हैं
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