नई शुरुआत
आज महफ़िल में उनसे नज़रें मिलीं 2
आँखों ही आँखों में मुलाकात हुई
वो निकल वहाँ से कुछ किनारे हुए
मैं भी अंजान बन उनके साथ हुई
उनकी आँखों में सवाल थे, दर्द थे
और कुछ जज्बात थे
जवाब न था किसी का मेरे पास
मेरी आँखें भी बेजान हुई
एक लफ्ज न कहा यूँ ही बस
मोहब्बत से देखते रहे
मेरी नजरें कुछ इधर उधर भटकीं
फिर उनसे दो-चार हुई
नजरों में खोए रहे हम
फिर खामोशी भी हार गयी
मैंने कुछ कहा ही था की
फिर उनके लफ्जों की भी शुरूआत हुई
वो कहते रहे हम सुनते रहे 2
उनकी शिकायतें हमसे हजार हुई
उनकी भीगी नजरों में अक्स डूब रहा था मेरा
फिर गले लग एक दूसरे के खूबसुरत सी शुरूआत हुई
आज महफिल में उनसे नजरें मिलीं 2
आँखों ही आँखों में मुलाकात हुई
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