एक मुट्ठी सुकून
एक मुट्ठी सुकून के लिए
महीने कर्ज़ कर रहे हैं लोग
शांत हैं पर मौन आँखें हैं बोलती
हर एक नज़र दर्ज़ कर रहे हैं लोग
पीर मिटाने दिया था मरहम
जिन हाथों को यकीन से
उन हाथों में शोले देख
अब हर्ज़ कर रहे हैं लोग
जिस वृक्ष को सींचने
छोड़ा था अपना काफ़िला
आज अधूरा छोड़ उसे
खुद राही फ़र्ज़ कर रहे हैं लोग
यहाँ महफिलों की शान की
अब बात नहीं रही 'गुंजन'
नया वृक्ष तलाशो सींचने, जहाँ
स्वच्छन्द अर्ज़ कर रहे हैं लोग
उम्मदा लेखन है आपका
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
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