औरत.....
कहते हैं शर्म औरत का गहना है
सुखी वही, जिसने इसे पहना है
मेरा विरोध नहीं किसी से भी
पर एक छोटा सा सवाल है...
कहाँ कितनी शर्म दिखानी है
मेरे दिमाग में बस यही बवाल है
समाज का भी एक अलग ही कायदा-ढंग है
इतनी नाइंसाफी मर्दों के साथ भला ये कैसा रंग है
गहना सिर्फ औरत को... मर्द को यूँ ही छोड़ दिया
फिर भी मर्दों ने औरत की इज्जत पर है बड़ा ज़ोर दिया
'सुरक्षित नहीं है बाजार अकेले जाना'
इसका पाठ हमेशा पढ़ाया है
क्या औरत औरत से सुरक्षित नहीं???
क्या इससे समाज घबराया है???
"सलीके से चलना, ज्यादा जोर से मत हँसना
ऊँची आवाज़ में ज्यादा बातें न करना
दिन में जो काम हो निबटा लेना आराम से
तुम बाहर जाने में ज्यादा रातें मत करना"
इतनी सीख के साथ बहुत कुछ सीख गई आज की नारी
सलीके अदब के साथ इज्ज़त पाना पड़ा कई बार भारी
पर कोई नहीं....इसमें कौन सी बड़ी बात है
ये तो जरूरी ही है क्योंकि औरत जात है
अब बात थोड़ी चरित्र की कर लेते हैं
सुना है नारी हो रही बहुत चरित्रहीन है
पर ये कैसा पैमाना है जो पुरुषचर्चा विहीन है
बस नारी को ही मर्यादा और चरित्र बताया जाता है
कुछ तो चरित्र मर्द का भी होगा उसे क्यों छुपाया जाता है
चलिए ये तो दिमाग की उथल पुथल है
इसमें उलझना शायद व्यर्थ है
पर जवाब जरूर दें गर लगे कि
मेरे सवाल का कोई अर्थ है
हाथ जोड़ कर विनती है
मेरी बात को इज्जत-आन-बान पर मत लेना
अपनी मर्यादाओं में बोल रही हूँ
तुम इसे झूठे सम्मान पर मत लेना
क्योंकि....
कहते हैं शर्म औरत का गहना है
सुखी वही, जिसने इसे पहना है
'गुँजन' का विरोध नहीं किसी से भी
पर एक छोटा सा सवाल है...
कहाँ कितनी शर्म दिखानी है
इस दिमाग में बस यही बवाल है
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