बरखा तुम साहसी हो
बरखा क्या तुम्हें डर नहीं लगता
रात-बेरात निकल पड़ती हो
ज़मीं की तपन पाने को
लगता है तुम्हारे यहाँ
दरवाजों पर ताले नहीं लगाए जाते
तभी अंधेरी रात में तुम
मेघों को चकमा दे,
धरती पर आ धमकती हो
देखो सारे आकाश में
मेघ टॉर्च की रोशनी में
तुम्हें ढूँढते, आवाज़ देते हैं
उनकी आवाज़ों से हम
दरवाज़े खिड़कियाँ
कसकर बंद कर लेते हैं
क्या तुम्हारे यहाँ अच्छे घर की
लड़कियाँ यूँ ही बाहर घूमती हैं
क्या तुम्हारे समाज के लोग
तुम्हारे चरित्र को संदेह की दृष्टि
से नहीं देखते???
क्या तुम्हें कभी
अग्नि परीक्षा का सामना
नहीं करना पड़ता
बरखा क्या देनी पड़ती है तुम्हें
अपनी बेगुनाही की निशानियाँ
बरखा बड़ी साहसी हो तुम
जो रहती अपनी
मौजों में मस्त हो
तुमसे सीखना होगा हमें
यूँ मौजों में रहना
यूँ मदमस्त चलना
गुंजन राजपूत
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